शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

अजीबो गरीब जानकारी


दोस्तों आज में आपके लिए लाया हू इंटर नेट की दुनिया से कुछ ऐसी अजीबो गरीब जानकारी जिसे पढ़ कर आपको बहुत मजा आयेगा


आंसू बहाते हुए बच्चे की इस पेंटिंग के किस्से 1985 के करीब ब्रिटेन में काफी चर्चा में रहे। इस दौरान वहां कई घरों में आग लगने की घटनाएं घटी थीं। आश्चर्य की बात ये थी कि घरों में सबकुछ जल जाता था सिर्फ आंसू बहाते बच्चे की पेंटिंग बच जाती थी।

मतलब ये कि जहां ये पेंटिंग होती वहां आग लग जाती थी। यॉर्कशायर के एक फायरमैन ने सबसे पहले ‘द सन’ अखबार में ये बात कही थी। इसके बाद अखबार के दफ्तर में कई लोगों के इस तरह के फोन आए। बाद में अखबार वालों ने सभी लोगों से ये तस्वीर उनके दफ्तर में लाने को कहा और सभी को आग लगा दी गई।
इस तरह उन लोगों को इसकी बद्दुआ से निजात मिली। कई लोगों ने अपने घर में आग लगने का जिम्मेदार इस पेंटिंग को ठहराया। कई लोगों के घर वाले आग में मारे गए। फिर भी इस पेंटिंग में ऐसा क्या था, ये पेंटिंग किसने बनाई थी और ये बच्चे कौन था, ऐसे कई सवाल आज भी राज हैं।
रॉथेरहैम के फायर स्टेशन अधिकारी एलन विल्किनसन इस राय से सहमत नहीं थे। फिर भी उनकी पत्नी का कहना था कि बच्चे के आंसू ही पेंटिंग का जलने से बचाते थे। 1995 में डेवॉन के रिटायर्ड स्कूल मास्टर जॉर्ज मैलोरी ने पता लगाया कि ये पेंटिंग एक स्पेनिश कलाकार फ्रेंचॉट सेविले ने बनाई थी। उन्होंने डॉन बोनिलो नाम के इस बच्चे की पेंटिंग बनाई थी।
वह 1969 में उन्हें मेडरिड में भटकता हुआ मिला था। बच्चे के माता पिता आग में जल गए थे और वह बच गया था। जिस कैथलिक पादरी ने बच्चे को पहचाना था, उसने सेविले को उसे गोद लेने से मना किया था। फिर भी सेविले नहीं माने और एक दिन उनका स्टूडियो भी जल गया था। 1960-70 के दशक में बेहद पॉपुलर रही ये पेंटिंग 1985 के बाद किसी घर में नजर नहीं आई।

राज़ है गहरा
ब्रिटेन में आंसू बहाते हुए एक बच्चे की पेंटिंग काफी पॉपुलर हुआ करती थी। बाद में पता चला कि जिस घर में ये होती थी, वहां आग लग जाती। मगर, सबकुछ जलकर खाक हो जाने के बाद सिर्फ ये पेंटिंग बच जाती थी। इसके पीछे क्या कारण था ये आज तक कोई नहीं समझ सका है।

कुछ ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज में हाईटैक वाशिंग मशीनें रखी गई हैं जो कपड़े धुलने का चक्र पूरा होने पर इसका इस्तेमाल करने वाले को ईमेल कर देती हैं कि आकर कपड़े ले जाओ। इन डिजिटल मशीनों के निर्माताओं का कहना है कि छात्र जब धोने के लिए कपड़े ढोकर लाते हैं और सभी मशीनों को व्यस्त देखते हैं तो उन्हें बहुत निराशा होती है।


अब उन्हें ऐसी मायूसी का सामना नहीं करना पड़ेगा। सबसे पहले लॉन्ड्रीव्यू मशीनें लीड्स यूनिवर्सिटी में इंस्टाल की गई थी। वहां के छात्र कपड़े धोने के लिए ले जाने से पहले एक वेबसाइट पर खोलकर देख लेते थे कि मशीनें खाली हैं या नहीं।


इसके बाद छात्र एक सामान्य मशीन की तरह उनमें कपड़े भर देते। बाद में कपड़े धुलने पर उठाए जाने के लिए उन्हें एक ईमेल मिलती थी। यह स्कीम इतनी सफल साबित हुई कि अब ऐसी मशीनें 28 यूनिवर्सिटियों में इंस्टाल की जा चुकी है।


इंग्लैंड का एक कॉलेज अपने अजीबोगरीब ऑफर के कारण छात्रों को असफल होने के लिए उकसाने की आलोचना झेल रहा है। दरअसल, कॉलेज ने फेल होने वाले छात्रों को पांच हजार पाउंड देने की बात कही है। अपनी बात में वजन डालते हुए कॉलेज प्रशासन ने कहा कि उनके छात्र फेल ही नहीं होते, यदि ऐसा हुआ तो वे पांच हजार पाउंड देने को तैयार हैं।

ब्लैकबर्न कॉलेज का दावा है कि 27 साल से कॉलेज की ‘ए’ लेवल परीक्षाओं का औसत रिजल्ट ए-ग्रेड में आ रहा है। यह ऑफर इसलिए भी दिया गया है कि कॉलेज छात्रों के लिए परीक्षाएं आसान होती जा रही हैं। कॉलेज के ऑफर की आलोचना करने वालों का कहना है पढ़ाई और परीक्षाओं का स्तर सुधारने के बजाए कॉलेज अपने छात्रों को फेल होने के लिए उकसा रहा है। यह तो लोगों के टैक्स का दुरुपयोग भी है।

कमजोर छात्रों को भीख है ये ऑफर

कॉलेज की नई स्कीम को नजरअंदाज कर 400 ए-लेवल छात्रों को ज्यादा मेहनत करनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि ऐसा नहीं किया तो वे अगली परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगे। रियल एजुकेशन कैंपेन चला रहे निक सीटन ने इस ऑफर की आलोचना करते हुए कहा कि यह तो ऐसे छात्रों के साथ खिलवाड़ है, जो बाउंड्री पर रहते हैं।

कमजोर छात्रों के लिए इस तरह के ऑफर भीख की तरह होंगे। टेक्सपेयर्स एसोसिएशन के फिओना मेकइवाय ने कहा कि यह उटपटांग ऑफर लोगों के टैक्स चुकाने का मजाक है, जो विषम परिस्थितियों से मुकाबला करने में सरकार के काम आना चाहिए। कॉलेज के एक होनहार छात्र स्टीफन एशवर्थ ने भी ऑफर से असहमति जताते हुए कहा कि यह ऑफर कुछ छात्रों को निश्चित रूप से पसंद आएगा, जो बाउंड्री पर पास होने के बजाए फेल होना ज्यादा पसंद करेंगे।


देश में पहली बार एक ऐसी टैक्सी आने वाली है जिसमें चालक (ड्राइवर) की जरुरत नही होने वाली है। इस गाड़ी से लोग सिर्फ दस रुपए में आधे घंटे का सफर 10 मिनट में तय कर सकेंगे। जी हां लंदन के बाद अब पहली बार दिल्ली से सटे गुड़गांव में ‘पॉड टैक्सी’ की शुरुआत होने वाली है। ये टैक्सी चार्जेबल बैटरी से चलती है। जो पूरी तरह से पर्यावरण के अनुरूप होगी।

इसके अंदर लगे टच स्क्रीन पर आपको अपनी मंजिल चुननी होगी और ‘पॉड टैक्सी’ आपको सबसे छोटे रास्ते से वहां पहुंचा देगी। यह किसी लिफ्ट को ऑपरेट करना जैसा आसान होता है। इस टैक्‍सी में 4 से 6 लोग एक साथ सफर कर सकते हैं। यानी अब आप ले सकते हैं ‘पॉइंट टू पॉइंट जर्नी’ का मजा।



एक घर को लूटने आए दो हथियारबंद लुटेरों पर जब एक महिला ने झाड़ू लेकर हमला कर दिया तो चोरों को सर पर पांव रखकर भाग निकलने के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया। पुलिस अधिकारी स्टीफन फॉक्स ने कहा कि यह लुटेरे घर की एक खिड़की तोड़कर अंदर घुसे थे।
उन्होंने कहा कि एक 49 वर्षीय व्यक्ति शोर सुनते ही सीढ़ियां उतरकर नीचे आया तो लुटेरों ने उसे बांध दिया। फिर उसका 90 वर्षीय पिता नीचे आया तो बंदूक की नोक पर लुटेरों ने उससे 50 डॉलर छीन लिए।
फिर जब वे सीढ़िया चढ़कर ऊपर जाने लगे तो उनका सामना 43 वर्षीय एक महिला से हुआ जो झाड़ू लेकर उनका इंतजार कर रही थी। उसके हाथ में झाड़ू और उसका रौद्र रूप देखकर लुटेरों के होश उड़ गए और उन्होंने वहां से चंपत होने में ही अपनी भलाई समझी

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